The smart Trick of Shodashi That Nobody is Discussing
Wiki Article
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।
Her representation is not static but evolves with creative and cultural influences, reflecting the dynamic nature of divine expression.
हर्त्री स्वेनैव धाम्ना पुनरपि विलये कालरूपं दधाना
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥८॥
प्रणमामि महादेवीं परमानन्दरूपिणीम् ॥८॥
षोडशी महाविद्या प्रत्येक प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु इनकी साधना अति उत्तम मानी जाती हैं। त्रिपुर सुंदरी महाविद्या संपत्ति, समृद्धि दात्री, “श्री शक्ति” के नाम से भी जानी जाती है। इन्हीं देवी की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवीं महाविद्या धन, सुख तथा समृद्धि की देवी महालक्ष्मी है। षोडशी देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक शक्तियों से more info हैं जोकि समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तियों की देवी अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। तंत्रो में उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि जादुई शक्ति षोडशी देवी की कृपा के बिना पूर्ण नहीं होती हैं।- षोडशी महाविद्या
Shodashi’s mantra aids devotees launch past grudges, ache, and negativity. By chanting this mantra, people today cultivate forgiveness and psychological release, selling relief and the ability to move forward with grace and acceptance.
In the pursuit of spiritual enlightenment, the journey begins Together with the awakening of spiritual consciousness. This initial awakening is essential for aspirants who're with the onset in their route, guiding them to acknowledge the divine consciousness that permeates all beings.
Her elegance is really a gateway to spiritual awakening, building her an object of meditation and veneration for people trying to get to transcend worldly needs.
श्रौतस्मार्तक्रियाणामविकलफलदा भालनेत्रस्य दाराः ।
केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥
इति द्वादशभी श्लोकैः स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् ।
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥